मार खा रोई नहीं - (भाग एक)

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(यह उपन्यास एक शिक्षिका की डायरी के पन्ने हैं।एक शिक्षिका की डायरी से भी प्याज की तरह गठीले शिक्षा तंत्र की कई परतें खुल सकती हैं और यह पता चल सकता है कि एक स्त्री का मर्दों के क्षेत्र में उतरना सहज नहीं है। )ज़िन्दगी का ये कैसा दौर है !ऐसा लगता है जैसे मैं किसी धुंध में खड़ी हूँ,जहां से कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा।ऐसा लगता है जैसे मैं फिर से उसी मोड़ पर आ खड़ी हुई हूँ ,जिसके चारों तरफ रास्ते ही रास्ते हैं,पर उनमें से कोई मुझे मेरी मंजिल तक नहीं ले जाएगा।पच्चीस वर्ष पहले मैं