औरत यानि दुःख गठरिया

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लघुकथा - दुख का विस्तारराजनारायण बोहरे "चलो जी अब हम सब किचन से बाहर चलती हैं, अब उपमा आ गयी वे ही नये नये तरह के व्यंजन बनायेंगी। " उपमा को देखते ही उसकी जेठानी और देवरानी किचेन में बाहर होने लगी तो सास ने रोका "अरे , वो शहर से अभी तो यहां पहुंची है, दो घड़ी आराम कर लेने दो, उसे चाय वाय तो पिलाओ, फिर वह भी किचने में ही तुम लोगों के साथ रहेगी।"ऐसा सदा ही होता था। जब भी घर की सब स्त्रीयां इकट्ठा होती, उपमा सबकी जलन का केन्द्र होती। जेठानी देवरानी एक ही बात