चन्द्र-प्रभा--भाग(१५)

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तू ही मेरी बेटी प्रभा है, मैं तुझे पहचान क्यों नहीं पाई?तू इस रूप मे हैं कि तुझे देखकर मैं कल्पना भी नहीं कर सकतीं कि तू कैसी दिखती है बड़ी होकर,बहुत विवश हूँ मैं,मेरी पुत्री और रोते हुए जलकुम्भी ने मैना बनी सूर्यप्रभा पर प्रेमपूर्वक अपना हाथ रखा और माँ का ऐसा प्रेमभरा स्पर्श पाकर सूर्यप्रभा के नेत्रों से अश्रुओं की धारा बह चली।। माँ और पुत्री सारी रात्रि यूँ ही वार्तालाप करतीं रहीं,उस रात्रि क्या क्या हुआ था? वो सारी घटना जलकुम्भी ने सूर्यप्रभा से कह सुनाई और बोली तुझे ज्ञात है मेरी पुत्री कि मैने ये