फूलझर वन जहाँ के फूल कभी भी कुम्हालाते नहीं थे,फूलझर वन सदैव किसी ना किसी पुष्पों की सुन्दरता से सुसज्जित रहता था,वहां की धरती पर सदैव पुष्प झड़ कर गिरते रहते हैं, इसलिए उसका नाम फूलझर वन था,वहां की सांझ और सवेरे की सुन्दरता मन मोह लेती थीं, पंक्षियों का कलरव और श्वेत स्वच्छ जल के झरनें वहाँ की सुन्दरता बढ़ाने मे पूर्ण योगदान देते,विशाल वृक्ष सदैव फलों से भरे रहते,वहां की लताएँ दूसरे वृक्षों पर लिपट कर अपना प्रेम प्रकट करतीं,वन मे कुलाँचे भरते मृग स्वच्छंदता से विचरण करते।। परन्तु एक दिन राजकुमार भालचन्द्र वहाँ आखेट करते हुए