कपूत बेटा

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दफ्तर में सबसे बड़ी चिकचिक हुई थी इसलिए सर बिना रहा था । वह दफ्तर से बाहर निकल कर सड़क पर यूं ही खड़ा हो गया था। रिस्ट वॉच पर निगाह डाली तो पता लगा कि शाम हो चुकी है । झल्लाते हुए सोचा कि हमारे देश में कैसा है यह दफ्तरी जीवन ? न सुबह होते मालूम होती है ,ना शाम होती जान पड़ती! बस एक ही खटराग में उलझे रहो- दफ्तर ,अफ़सर और दफ्तर की नस्तियां !मन को विचारों से छुटकारा देकर मैंने घर की ओर कदम बढ़ाए । घर के पास आते ही जैसा कि हर बार