अर्पिता शान के घर से निकल आती है और एक दिशा पकड़ यूँ ही चलती जाती है उसके लिए तो वो शहर ही अजनबी है।किस राह जा रही है कहां जायेगी उसे कुछ नही पता।हाथ में सिर्फ एक मोबाइल के अलावा कुछ नही है।उसकी हालत उस राहगीर की तरह है जिसकी न मंजिल का कोई ठिकाना है और न रास्ते का ही पता।वो बहुत दुखी है।सड़क पर सबकी नजरो में होने के कारण वो जैसे तैसे अपने आंसुओ को रोके हुए है।क्योंकि यहां आंसुओ को देख हमदर्दी जताने वाली निगाहे बहुत मिल जाएंगी लेकिन उनकी ये हमदर्दी बिन किसी स्वार्थ