विनाशकाले.. - भाग 4

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चतुर्थ अध्याय---------------गतांक से आगे …. रेवती के जीवन में छाए उदासी के बादलों की परछाई उसके मन के साथ- साथ चेहरे पर भी नजर आती थी।दमकता चेहरा अब मुरझाया से रहने लगा था।जब पति ही अपना न रहा तो साज-श्रृंगार किसके लिए करती।वह अक्सर सोचती कि ईश्वर ने उसके साथ यह अन्याय क्यों किया।रूप थोड़ा कम देता,परन्तु भाग्य पर यूँ स्याही तो न फेर देता। जब मन कमजोर होता है तो उसे भटकते देर नहीं लगती।चोट खाया हृदय, आहत स्वाभिमान अक्सर बदला लेने की प्रवृत्ति के वशीभूत होकर अपना ही सर्वनाश कर बैठता है।या शायद मन की रिक्ति उसके