माँ का उन्माद

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मानस दर्शन की एक व्याख्या के अनुसार बाल स्मृतियाँ हमारे अवचेतन के भंडार में संचित रहती हैं और यदा-कदा हमारे सपनों में आन प्रकट होती हैं, उनके केंद्र में रही घटनाएँ बेशक परिधि् पर चली जाएँ किन्तु उन घटनाओं से उपजे मनोभाव एवं मनोविकार तथा आवेश एवं संवेग जीवन-पर्यंत हमारे साथ लिपटे रहते हैं। इसीलिए आज 2009 में भी सन् 1948 के मेरे पिता के बँगले का वह कुआँ समय- समय पर मेरे सपनों में तो मुझे दिखाई देता ही है, जिसमें माँ को फेंका गया था, अपनी बगल में बैठे सिक्के फेंक रहे पिता के ठहाके की भयावहता भी