चुनिंदा लघुकथाएँ - भाग 2 - 1

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1 " फेरों का मुहूर्त " रात के बारह बजने वाले थे। करीबी रिश्तेदारों तथा वर-वधू परिवारों के लोगों को छोड़कर विवाह समारोह में आमंत्रित लगभग सभी लोग खा-पीकर तथा बधाई-शुभकामनाएँ देने का फ़र्ज़ निभाकर जा चुके थे, किन्तु वर-पक्ष के युवावर्ग के बारातियों ने दुल्हा-दुल्हन को अभी भी स्टेज से उठने नहीं दिया था और डी.जे. की धुनों पर धमाल मचाया हुआ था। दुल्हन के पिता को फेरों के लेट होने की चिंता सता रही थी, लेकिन दुल्हे के दोस्तों को रोकने का दुस्साहस नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने अपने समधी से इस विषय में बात की, किन्तु