बदल गया मौसम

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बदल गया मौसम वह ट्रेन से उतर कर, स्टेशन परिसर के बाहर निकली ही थी कि मौसम बदलने लगा। जैसे-जैसे उसके कदम आगे बढ़ रहे थे, वैसे-वैसे धूप-छांव का खेल भी बढ़ रहा था। लेकिन कुछ ही लम्हों में सारी आंख मिचौली खत्म हो गई और काले, घने बादलों ने भरी दोपहरी को एकदम से अंधेरी शाम में बदल दिया। दोनों हाथों में सामान लिए वह लड़की अचानक से ठिठक गई। ‘मैं तो बुरी फंस गई। क्या करूं? कोई ऑटो वाला कॉलोनी की तरफ जाने को तैयार ही नहीं हो रहा। घर से भी कोई लेने नहीं आया। गलती मेरी