वापसी

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वापसी ————। ———————-कड़क स्वभाव वाली अम्मा यूँ लाड़ कभी नहीं जतातीं, जब तक कि कोई ख़ास बात न हो, नीलिमा सुबह से ही देख रही थी कि अम्मा कामूड ज़रा बदला हुआ है बल्कि रोज़ से बेहतर है ।वरना सुबह से ही अम्माँ कई बार टोका- टोकी कर चुकी होतीं ।रसोई से आ रही कढ़ी की छौंक की तीखी सुगंध उसकी नाक से टकरायी ।कढ़ी की भनक लगते ही नीलिमा भाग कर रसोई की ओरलपकी , तभी डाइनिंग टेबल से ज़ोर से टकराते- टकराते बची और छन्न् से जब टेबल पर रखा स्पून नीचे गिरा तो अम्मा चिल्लाकर बोलीं- अरी ! दिख नहीं रहा है क्या ? और दौड़ काहे को रही हो ?अरे अम्माँ कढ़ी की सुंगध खींच लाई मुझे यहाँ तक । ज़रा कढ़ी चखाओ न् , नीलिमा अम्मा की डपट को नज़रअंदाज़ करते हुए बोली।अम्मा ने चुपचाप एक छोटी कटोरी में कढ़ी डाल कर नीलिमा की ओर बढ़ा दिया ।नीलिमा तो बेसब्र थी ही , हल्की पीली रंगत लिए कढ़ी की पकौड़ियों से निकलती भाप की परवाह किए बिना ही उसे चम्मच से काटा औरफूँक-फूँक कर मुँह में डाल लिया । ऊँ ... हूँ ... हूँ... क्या लज़्ज़तदार कढ़ी बनी है अम्मा और इसमें डली हींग ने तो इसका स्वाद हीदोगुना कर दिया है । माँ जी करता है कि तुम्हारे हाथों को चूम लूँ ।अरे लड़की परे हट्.....सारे दिन बस मसखरी करती फिरती है । मुझे अभी ढेरों काम हैं, ये नहीं कि मेरे कामों में हाथ बँटा दें कभी । कम से कम लिविंग रूम को तो सहेज देती या फिर कुशन कवर ही बदल देती । लंच क़रीब क़रीब तैयार ही है । मीना मौसी , मौसाजीऔर उनके बच्चे अब स्टेशन पहुँचने ही वाले होंगे ।मैंने जग्गू को गाड़ी लेकर स्टेशन भेज दिया है रिसीव करने ,बस आते ही होंगे वे लोग ।कह कर अम्माँ अपने काम में लग गईं ।दरअसल मीना मौसी अम्मा की सगी बहन नहीं थीं , पर अम्मा उन्हें सगी से भी ज़्यादा मानती थीं । नाना जी की मृत्यु माँ के बचपन में हो गई थी और नानी जी भी उनके शोक में जल्दी ही चली गईं । बाद में मीना मौसी के पिता जी यानिमहेंद्र नाना जी ने ही अम्मा को बेटी की तरह पाला पोसा था । महेंद्र नाना जी जो माँ के चाचा लगते , उन्होंने इसी चक्कर में ख़ुद देर सेशादी की , नानी जी का भी स्वभाव अच्छा था , जिसकी वजह से अम्मा को आज भी मायके का पूरा सुख मिलता है । अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थीं अम्मा , उनके माता-पिता खेत-पथार इतना छोड़कर गए थे कि किसी का भी मन बेईमान हो सकताथा पर महेंद्र नानाजी ने पाई - पाई का हिसाब रखा और अम्मा की पढ़ाई लिखाई के बाद सबकुछ उन्हें सुपुर्द कर दिया , शादी - ब्याह मेंभी पूरी ज़िम्मेदारी निभाई ।अम्मा अक्सर कहतीं हैं कि आज के ज़माने में कौन करता है इतना ? मुझे तो माता-पिता की कमी नहीं होने दिया इन्होंने, तुम दोनों बच्चोंका भी ननिहाल तो इन्हीं से है ।अम्माँ की बातों को सुन कर भैय्या अक्सर कहता अब बंद भी करो माँ अपना पुराण ।फिर कुछेक साल बाद महेन्द्र नाना जी मीना मौसी को लेकर उनका एडमिशन करवाने पटना आये पर बहुत कोशिश करने के बाद भीमीना मौसी को कॉलेज में हॉस्टल नहीं मिला तो अम्मा ने उन्हें अपने घर पर रखा और तब वहीं रहकर मीना मौसी ने ग्रेजुएशन किया ।साथ-साथ रहने के कारण ही नीलिमा भी उनसे ख़ूब हिली- मिली थी ।सहेलियों के घर जाना हो मूवी देखने जाना हो नीलिमा , मीना कोज़रूर साथ ले जाती । छुट्टियों में मीना मौसी के साथ गाँव जाने में बेहद मज़ा आता ।सभी इंतज़ार कर ही रहे थे कि तभी बाहर गाड़ी के हार्न की आवाज़ सुनाई दी , नीलिमा दौड़ कर बाहर गई , अम्मा भी उसके पीछे हो लीं ।पूरे पाँच साल बाद मीना मौसी आईं थीं ।मौसी को देखते ही नीलिमा उनसे लिपट गई । अम्माँ ने भी उन्हें गले लगाते हुए कहा - अरे मीना आँखें तरस गईं थीं तुम लोग को देखने के लिए और उनकी दोनों बेटियों को प्यार सेभीतर लाने ही वाली थीं कि पीछे मुड़कर देखा और आश्चर्य से पूछा - मीना मेहमान नहीं आए ? तुमलोगों के साथ उन्हें भी तो आना था न्?नहीं उन्हें कुछ ज़रूरी काम से कलकत्ता जाना पड़ा दीदी , इसलिए नहीं आ पाए । मीना मौसी बोलीं ।मीना मौसी के इस उत्तर से अम्मा आश्वस्त नहीं लगीं पर फिर भी उन्होंने कहा नहीं कुछ ।बस चुपचाप मीना मौसी के चेहरे के हाव-भावको देखती रहीं ।नीली मीना मौसी को कमरे तक ले जाओ और बच्चों को भी फ़्रेश करवा दो दो । नींद आ रही है छोटी को लगता है , दूध तैयार है । पिलादो दोनों को , अम्मा ने कहा ।मैं तब तक गणेश से खाना लगवा देती हूँ । तुमलोगों को भूख भी लगी होगी कहती हुई अम्मा रसोई की तरफ़ मुड़ गईं ।सफ़र में थकान होने की वजह से दोनों बच्चों को नींद आ रही थी तो दोनों के कपड़े बदल कर , बस थोड़ा ही दूध पिया दोनों ने । उन्हें वहींबेड पर सुला कर मीना कमरे से बाहर निकली और नीलिमा के साथ डाइनिंग हॉल में पहुँची ।खाना पीना हो जाने के बाद ड्राइंगरूम के सोफ़े पर धँस कर गपियाने का मूड हो आया सो तीनों वहीं बैठ गईं ।दीदी जीजाजी और मानस नहीं दीख रहे हैं ? मीना ने पूछा ।अरे तुम्हें बताना भूल गई थी मीना, मानस इन दिनों जॉब्स ढूँढ़ रहा है और इंटरव्यू के लिए बैंगलोर गया हुआ है और अपने साथ पापा को भी ले गया है ।ओह अच्छा, तभी कुछ ख़ाली सा लग रहा है , वरना अभी तक मानस मौसी - मौसी कह कर कई चक्कर काट चुका होता - मीना ने कहा अच्छा ये सब बातें छोड़ अपने बारे बता , पाँच साल हो गए और हम दोनों अपने अपने परिवारों में यूँ व्यस्त रहे कि कभी कभार सिर्फ़ हाल-चाल ही ले पाए , इत्मीनान से तो बात ही नहीं हो पाई , अम्माँ बोलीं ।क्या बताऊँ दीदी , सब चल रहा है ।मीना मौसी ने कहा ।मेहमान जी कब लौट रहे हैं कलकत्ता से मीना ?...... मीना मौसी चुपचाप फ़र्श की ओर देखती रहीं ।क्या बात है मीना ? अम्माँ चिहुँक ने कर पूछा - सब ठीक है न !दीदी बहुत लंबी कहानी है ,माँ - पिताजी से भी कुछ कह ना सकी , पर आज अपने मन का बोझ उतार देना चाहती हूँ । मीना मौसी नेअपनी बात जारी रखते हुए कहा कि — शादी के बाद कुछ दिनों तो सब अच्छा रहा पर दोनों बेटियों के जन्म के बाद घर में तनावपूर्णमाहौल रहता ।सासू माँ तो पहले ही मुँह फुलाये रहती थीं अब तो रोज़ ही ताने देतीं ।मनोज का बिज़नेस भी अच्छा नहीं चल रहा था , पैसों की क़िल्लतकी वजह से घर में रोज़ चिक-चिक होती । बेटियों के लिए ताने सुन कर मैं तिलमिला कर रह जाती तो मनोज भी माँ की बातों पर एतराज़ करते और कहते - माँ बच्चों के लिए ऐसेअपशब्द न निकाला करो , देखना एक दिन ये ही तुम्हारा नाम रौशन करेंगी ।पर स्थितियाँ हमेशा एक सी नहीं होतीं , दीदी । अचानक बिज़नेस में घाटे और पैसों की क़िल्लत से जूझते मनोज भी धीरे-धीरे उदासीनहोते गए । दिन पर दिन पैसे- कौड़ी को लेकर चिंतित रहते और घर में टेंशन रहता सो अलग ।बस दिन कट रहे थे ।पर एक दिन औचक ही सब का रवैया बदल गया, घर वालों के हाव-भाव देख कर लगता जैसे कोई जादुई छड़ी मिल गई हो ।अचानक ऐसा लगा मानो घर में सभी सुह्रदय हो गये हों। मुझसे किसी ने कुछ नहीं बताया बस आपस में जाने क्या बातें की और जब मैंसामने पड़ी तो सब चुप हो गए । उस दिन जब मनोज ऑफ़िस से लौटते समय गर्म जलेबियाँ ले आए और ख़ुश होकर बच्चों को दिया तोमैंने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद किया कि सब कुछ बदल रहा है। अगले दिन मनोज ने बड़ी संजीदगी से अपने बिज़नेस की बहुत बातें मुझसे शेयर किया और कहा - मीना आजकल घर की हालत तो देखरही हो , मैं अकेला क्या - क्या संभालूँ ? देख ही रही हो कि धंधे में भी मुनाफ़ा नहीं है , दाल रोटी भी मुश्किल से चल रही है।बेटियों के भविष्य के लिए भी कुछ जमा नहीं हो पा रहा है। मैं तो बस उनकी बात सुन कर चुपचाप मटर छीलती रही ।समझ में नहीं आ रहा था कि उन्हें क्या जवाब दूँ।मनोज ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि मेरा एक दोस्त है वह कह रहा था कि उसकी पहचान वालों में किसी दंपति को बच्चाचाहिए उसके लिए उन्हें सेरोगेट मदर की तलाश है।मनोज की बातों को सुनकर मेरा माथा ठनका ।मैंने फ़ौरन पूछा कि मैं कुछ समझ ही नहीं ? आख़िर आप ये सब बातें मुझसे क्यों कह रहेहैं ?मीना , मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं तुमसे कैसे कहूँ ? दरअसल वे लोग बहुत अच्छी रक़म चुकाने को तैयार है और इससे हमारे घरकी हालत सुधर सकती है यदि तुम हाँ कहो तो ।मनोज की बात सुनकर मैंने मटर वाली देगची वहीं पटकी और कमरे के भीतर जाकर तकिये में मुँह छुपा कर रोने लगी, मनोज मेरे पीछे - पीछे आए और मेरे पास बैठकर मेरे बालों पर हाथ फेरते हुए बोले तुम से ज़बरदस्ती नहीं करना चाहता मीना , बस एक दफ़ा दिल सेसोचना । यदि ठीक लगे तभी हाँ करना।मैं चीख़ी और कहा - तुम इस हद तक गिर जाओगे मालूम न था । शर्म आनी चाहिए तुम्हें, ऐसा सोच भी कैसे सकते हो तुम । उठ्ठल्लूसमझ रखा है मुझे ?मनोज ने कोई जवाब नहीं दिया , बस चुपचाप मेरे ग़ुस्से को पीते रहे ।उस रात मुझे नींद नहीं आई दीदी ।मन ही मन मैं अपने आप से ही लड़ती रही एक मन कहता दोनों बिटिया के लिए कुछ पैसे जुटा लें दूसरा मन बिलकुल नकारता , बस इसी ऊहापोह में दो दिन बीत गए।तीसरे दिन , ऑफ़िस से जब मनोज लौटे तो उनके साथ एक अपरिचित व्यक्ति था । मुझसे उन्होंने परिचय करवाया- मीना इनसे मिलो , ये हैं नवीन मेहता ।बातों ही बातों में उस व्यक्ति ने मुझे सेरोगेसी के बारे में बहुत कुछ बताया। बहुत सी बातों से अवगत कराया , बावजूद इसके मैंने उन्हेंसाफ़ मना कर दिया ।मेरे बार-बार मना करने के बाद भी उन्होंने मुझे डॉक्टर से मिलने की सलाह दी।दूसरे दिन जब मनोज मुझे डॉक्टर से मिलवाने ले गए वहींएक दंपत्ति भी आए हुए थे , डॉक्टर ने मेरी ख़ूब अच्छी कॉउंसिलिंग की और उस निस्संतान दम्पति से भी मिलवाया । बड़ी मुश्किल से मैं तैयार हुई तब एक एग्रीमेंट तैयार किया गया जिसके अनुसार मुझे डिलिवरी के बाद एक तय रक़म मिलने की बातकही गई।साथ ही इस दौरान मेरे पूरे परिवार का ख़र्च भी उठाने का उसमें ज़िक्र था।दीदी सच बताऊँ तो भीतर ही भीतर मुझे कोई अनजान सा डर खाए जा रहा था और सच पूछिए तो मुझे सिर्फ़ अपनी दोनों बेटियों की हीचिंता थी। कई रातें मुझे नींद नहीं आयी पर मनोज हमेशा मेरे आस - पास रहते और मुझे लगातार समझाते - डरो मत मीना हम सबतुम्हारे साथ हैं । सब कुछ अच्छा होगा। पर सच कहूं तो मुझे अपने प्रति घरवालों का ये प्यार और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार,सब ढकोसला लग रहा था ।बस एक ही सच सामने था, वह था पैसा , बाक़ी सब व्यर्थ लग रहा था।दीदी , तब मैं कई बार आईने में ख़ुद को निहारती , अपनी कोख पर हाथ फेरती ।अजीब ऊहापोह थी , अपनी कोख को किराए पर दूँगीकभी सपने में भी सोचा ना था ।फिर एक दिन आया जब मुझे अस्पताल में भर्ती कराया गया , तब दोनों बेटियों को सोता छोड़कर जाने में छाती फट रही थी, पर जी कड़ाकर घर से निकली और अस्पताल गई ।वहाँ मेरी घबराहट देखकर सिस्टर ने बड़ा हौसला दिया , देर तक मेरी हथेली को सहलाती रही ।फिर सेरोगेसी की प्रक्रिया शुरू हुई , गर्भधारण करने के बाद अपनी मर्ज़ी से कुछ भी करने नहीं दिया जाता था ।खाना-पीना , सोना-उठना व्यायाम आदि सब डॉक्टर की देखरेख में हो रहा था।नौ महीने तक ऐसा ही चलता रहा।मेरे अंदर पल रहे शिशु और मेरी सेहत के लिए पूरा अस्पताल यानि समूचा स्टॉफ अलर्ट रहता । मैं कभी अपनी मर्ज़ी से कुछ खा पी नहींसकती थी।कभी मुझे अस्पताल में रखा जाता तो कभी वहीं पास के रेस्ट हाउस में, इस दौरान परिवार वालों से भी मिलने की मनाही थी ।मैं जब कभी दोनों बेटियों के लिए उदास होती तो सिस्टर मुझे चीयर -अप करती और कहती - मैन तुमको ख़ुश होना माँगता , ये तुम्हारेलिए भी अच्छा है और बच्चा भी हेल्दी होगा।तब मैं न चाहते हुए भी मुस्कुरा देती ।खिड़की से बाहर देखती नीला आसमान कहीं से भी नीला नहीं दीखता गुलाबी रंग धीरे-धीरे सिंदूरीहोता हुआ , ठीक मेरे ह्रदय जैसा ...देखते ही देखते नौ महीने बीत गए और प्रसव के बाद मैंने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया।हम दोनों पूरी तरह स्वस्थ थे । बच्चे के माँ- बाप आये , उन्हें देखते ही एक बार फिर मेरा मन विचलित हो गया था, मेरी हाड़ मांस से बना मेरा बच्चा मुझे उनके हाथोंसौंपना पड़ेगा , सोच -सोच कर मेरा जी हलकान हुआ जा रहा था । जी चाह रहा था चीखूँ , ज़ोर ज़ोर से रोऊँ..... पर ऐसा कुछ भी करनामुनासिब न था ।मेरे घर लौटने का समय हो गया था , एग्रीमेंट के अनुरूप मुझे बच्चा अस्पताल में ही छोड़कर जाना पड़ा ।बाहर आई तो मनोज मेरा इंतज़ार कर रहे थे मुझे देखते ही दौड़ कर मेरे पास आये और सहारा देकर मुझे पोर्टिको में खड़ी कैब तक लेजाकर बैठाया , गाड़ी चल पड़ी । मन कचोटता रहा कि अपनी कोख़ में पले बच्चे को न जी भर देख पायी ना ही प्यार कर पाई ।रास्ते भरसुबकती रही और मनोज मुझे अपने काँधे से लगा प्यार से सहलाते रहे।मुझे मेरी रक़म मिल गई थी । घर आते ही मैंने दोनों बेटियों को जी भर कर प्यार किया । माता जी भी ख़ुश दिख रही थीं । पर ये सब ज़्यादा दिन नहीं टिका दीदी । एक बार फिर मनोज का रवैया पहले जैसा होने लगा । पैसों को लेकर लापरवाही बढ़ती रही ।सासू माँ भी पुराना राग अलापने लगीं ..,,.... पोता चाहिए ।हद तो तब हो गई जब मनोज नशे से धुत्त घर लौटने लगे और अक्सर अम्मा जी ने उन्हीं का पक्ष लेते हुए कहतीं - जाने कौन सा ग़म हैमेरे पुत्तर को वरना वह तो कभी शराब पीता ही नहीं । सुनते - सुनते जब कान पक गये तब एक दिन मैंने चीख़ कर कहा - मैंने इतने कष्टों को सहा सिर्फ़ अपने बच्चों के भविष्य के लिए, न किकिसी के गुलछर्रे उड़ाने के लिए । बात मनोज के कानों तक पहुँची तो नशे में लगे गाली-गलौज करने , यहाँ तक हाथ तक उठाने की नौबत आ गई । पर रोज़-रोज़ की ज़िल्लत के बाद इस बार मैंने सोच लिया कि अब बर्दाश्त नहीं करूँगी । अब मैं मुड़ कर नहीं देखूँगी ऐसी ज़िन्दगी को , ऐसे बेदिल रिश्तों को ।मैंने बहुत जगह जॉब के लिए अप्लाय किया है , रिवर्ट आते ही ज्वायन कर लूँगी । ओह ! मीना इतना कुछ झेला तूने और हमें पता तक नहीं । कभी तो बोलती न् बहना , अपने माँ- बाप को ना सही मुझसे तो कहती । एकबार हमलोग भी तुम्हारे ससुराल वालों से बात करके तो देखते ।नहीं दीदी, मुझे सहानुभूति नहीं , आत्मविश्वास चाहिए ताकि मैं पूरे आत्मसम्मान से जी सकूँ और अपनी दोनों बेटियों को भी लायक़ बनासकूँ , वरना इन लोगों ने तो हमें देहरी पर रखे पाँव- पोंछ बनाने में कोई कसर ही नहीं रखा ।मैंने तो हर संभव कोशिश की कि संबंध बनारहे पर ताली एक हाथ से कब बजी है ?और नौकरी लग जाए तभी माँ- पिताजी को बताऊँगी , वरना वे बेवजह परेशान हो जायेंगे।मीना मौसी आपके इस साहसिक क़दम में हम आपके साथ हैं, चलिए थोड़ा आराम कर लें फिर मेल चेक करते हैं कि कोई इंटरव्यू काकॉल आया कि नहीं , यदि नहीं आया तो और भी कई रास्ते हैं । अब आपने ठान ही लियाहै तो रास्ते के रोड़े पत्थरों से क्या डरना ।इतना कह दोनों मुस्कुराती हुई अपने कमरे की ओर बढ़ गईं ।— अमृता सिन्हा