हमेशा-हमेशा - 7

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सब राज़ी हैं। अम्मी के अल्फ़ाज़ शमा के कानों में गूँज रहे थे। यही तो उसका डर था कि राज़ी न हुए तो? पर ऐसा नहीं है। शमा ने अपनी कलाई घड़ी पर नज़र डाली, 6:45 बज रहे थे। अँधेरा होने को था। उसे याद आया सुबह जल्दी में वो बॉलकनी का दरवाज़ा खुला छोड़कर चली गयी थी। बॉलकनी का दरवाज़ा बंद करके वो सीधी किचन में गई और अपने लिए गर्म चाय बनायी। चाय के हर घूँट के साथ पिछली ज़िन्दगी उसके सामने तस्वीरों सी चलती रही। अचानक उसे पता नहीं क्या हुआ कि दौड़कर बॉलकनी में गयी और