स्वतंत्र सक्सेना की कहानियाँ - 9

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वेद प्रकाश डॉ0 स्वतंत्र कुमार सक्सेना वेद प्रकाश जी उस दि न बड़े प्रसन्न थे। कई दिनों से चिंतित थे, निराशा जनित आतंक ने उनकी नींद हराम कर रखी थी। सोचा भी न था वातावरण ऐसा बदल जाएगा । मंचों पर गुरुओं की भारतीय परंपरा के आज भी गुणगान किये जाते हैं। पर मास्टर का नाम आते ही अफसर कैसे मुंह बिचका देते हैं । सारे काम ही तो गुरु जनों पर लाद दिए हैं जन गणना गुरुजी करें, चुनाव गुरु जी करवाएं ,और साक्षरता आंदोलन चला तो उसका ठीकरा भी घूम फिर कर गुरु जनों के ही सर