कहानी सलीब पर टंगी लड़की ———— अमृता सिन्हा ————————बेडरूम में आराम करते-करते थकने लगी तो किचन में आ गई पल्लवी ।साफ़-सुथरे और चमकते किचन को देखकर उसके होठों परमुस्कान तैर आयी ।प्रमिला सब काम क़रीने से कर गई थी और खाना भी बना कर टेबल पर सजा दिया था ।विमल को तो सुबह हीऑफिस और गुंजा को रोज़ की तरह अपने कॉलेज जाना होता है ।वह सोई ही रही, बीमार होने की वजह से कोई उसकी नींद में ख़ललनहीं डालता यहाँ तक प्रमिला भी नहीं वरना उसकी बकबक तो हमेशा लगी ही रहती ।पल्लवी किचन की खिड़की से बाहर देखने लगी , हल्की खिली धूप हौले से किचन के फ़र्श पर पसरने लगी थी । पूरे घर में इस किचन की खिड़की से उसे ख़ास लगाव है , जिसकी दीवार से टिक कर वह देर तक बाहर झांका करती , और जंगले पर रखे पौधों से लाड़ करती । सारे पौधे उसी ने तो ज़िद् कर माली भैया से मँगवाये थे । तुलसी , गेंदा,ऑरिगानो, पान ,मनीप्लांट, लेमनग्रास और अपराजिता के बीज तो उसने ही बोये थे , जो अब फूट कर निकलने लगा था कोमल लता बनकर और लिपट गयाथा गेंदें की मज़बूत डाली से । कितना प्यार था उसे अपराजिता के बैंगनी और सफ़ेद फूलों से ।फूलों से लदी लताएँ बहुत भाती उसे परइतनी सोनी लताओं का दूसरों के सहारे फलना-फूलना उसे हमेशा खटकता भी ।इन्हें देख हमेशा सोचती इतनी भी क्या कोमलता किजीवन दूसरों के सहारे ही चले पर प्रकृति का गूढ़ रहस्य उसकी समझ से परे है सोचती हुई पल्लवी ने उन हरे पत्तों को प्यार से सहलाया ।वह अक्सर प्यार करती इन पौधों को, किचेन के शाक- सब्ज़ी और अनाजों को धोने से निकले पानी को बचा कर पौधों में डालती , ख़ूबध्यान रखती और अकेलेपन को दूर करने के लिए बातें भी करती क्योंकि माँ ने उसे सिखाया था कि यूँ बातें करने से पौधे ख़ूब पनपते हैं , उन्हें भी यूँ हिलना-डुलना और हम इंसानों के साथ घुलना-मिलना अच्छा लगता है । सोचते-सोचते पल्लवी ने गहरी साँस ली , तभी दीवार घड़ी पर नज़र गई , दिन के ग्यारह बज रहे थे।उसे याद आयाकि खाना खाने के बाद दवाई भी लेनी है । पिछले दो सालों से लगातार उसे स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझना पड़ रहा है ।ज़्यादा मुश्किल तो पिछले नवंबर सेही शुरू हुई जब वह सपरिवार उज्जैन जाने वाली थी , महाकाल के दर्शन के लिए । दर्शन के बुकिंग की सारी प्रक्रिया ऑनलाइन हो चुकीथी कि अचानक उसके पेट में दर्द उठा और लगातार बढ़ता गया जिसके कारण विमल और गुंजा घबरा कर उसे स्थानीय अस्पताल केइमरजेंसी वार्ड में ले गए , डॉक्टर ने चेक-अप करने के बाद एक पेनकिलर इंजेक्शन दिया जिससे उसे तत्काल आराम तो मिला पर कुछज़रूरी टेस्ट भी लिखा और कुछ दवाएँ भी ।पल्लवी उदास थी कि कहीं उज्जैन जाने का प्रोग्राम कैंसिल ना करना पड़े । उसे उदास देख विमल ने कहा - घबराने की कोई बात नहीं , ये दवाएँ लो ,अगर आराम आता है तो डॉक्टर से अनुमति ले कर चलेंगे , वरना यात्रा स्थगित कर देंगें , उज्जैन फिर कभी सही । पल्लवी ने बेमन से कहा - हाँ यही बेहतर रहेगा । वैसे भी , उज्जैन जाने में अभी तीन दिन बाक़ी हैं,तब तक आप ठीक हो जायेंगीं मम्मा ।नाउ चीयर अप , अब मुस्कुरा भी दो नाप्लीज़ मॉम , गुंजा ने ठुनक कर कहा तो पल्लवी अपने आप ही मुस्कुरा उठी।गुंजा के कहे मुताबिक़ सचमुच तीन दिनों में पल्लवी को आराम आया ,शायद दवाओं से ज़्यादा दुआओं ने काम किया था ।अब तोपल्लवी की उम्मीदों को जैसे पंख लग गए हों , बड़े दिनों बाद तीनों इकट्ठे किसी यात्रा पर जायेंगे वरना कभी गुंजा अपने कॉलेज औरपढ़ाई में व्यस्त रहती तो कभी विमल टूर पर रहते , साथ जाने का साइत तो इसी बार बन पाया है।प्रमिला के घर घुसते ही पल्लवी ने जाने की ख़बर सुनाई और चहक कर बोली- प्रमिला रास्ते के लिए कुछ बना देना , थोड़े शक्करपारेऔर थोड़े नमकीन ।हाँ दीदी सब बनाये देत हैं और जावे के दिन दूध से गूँधे आटे की पूरियाँ तैयार कर देव ताकि रास्ते में ख़राब न होएकहते हुए उसने अपनी कमर में खोंसी पल्लू को आज़ाद किया और हँसते हुए फ्रिज पर रखे अपने मोबाईल फ़ोन उठा कर ब्लाउज़ मेंठूँसते हुए बाहर दरवाज़े की ओर लपकी ।अरे ! प्रमिला ये भी कोई जगह है मोबाइल फ़ोन रखने की ? कितनी बार मना किया है यूँ ब्लाउज़ में मोबाईल रखना खतरनाक है शरीरको हानि पहुँच सकती है पल्लवी ने लगभग चीखते हुए कहा। पर , प्रमिला कहाँ सुनने वाली थी , तेज़ी से बाहर निकल गई।कॉलेज से लौटते ही हाथ-मुँह धोकर गुँजा सीधे उसके पास आयी और माथे को छुआ ।उसे जाने क्या लगा कि कहने लगी - माँ तबियतठीक है न ! अगर नहीं है तो कैंसिल करवा दो टिकटें , फिर कभी चलेंगें ।अरे नहीँ पगली! मैं बिलकुल चंगी हूँ ।अब टेस्ट-वेस्ट आकर करवाऊँगी, वैसे भी पापा ने कहा है कि आते वक्त़ डॉक्टर से मिलकर आयेंगेऔर हाँ पैकिंग कर लेना अपनी और पापा की भी , मैंने प्रमिला के साथ मिलकर अपनी ज़रूरी चीजें और कपड़े रख लिये हैं ।ओके माँ , कहकर गुँजा अपने कमरे में चली गई ।विमल भी आते समय ज़रूरी दवाओं को लाना नहीं भूले ताकि यात्रा के दौरान किसी भी तरह की परेशानी ना हो ।दो दिन तैयारियों में बीत जाने के बाद ठीक तीसरे दिन तीनों ट्रेन से उज्जैन के लिए निकल पड़े,रास्ते भर खाना-पीना ख़ूब बढ़िया रहा ।गुंजा और विमल को साथ चेस खेलते देख पल्लवी याद करने लगी कि कितने दिनों बाद बाप-बेटी को यूँ निश्चिंत देख रही है वरनारोज़मर्रे की कतरव्योंत में कहाँ समय मिलता , एक आता तो दूसरा जाता , बात तक होनी मुश्किल होती, कितना सुहाना लग रहा है सफ़रसबके साथ सोचते - सोचते हाथों में किताब लिए कब सो गई पता ही न लगा । स्टेशन आने वाला है सहयात्री ने कहा , उन्हें भी उज्जैन ही उतरना था । जैसे ही गाड़ी रूकी , गुंजा ने झुक कर खिड़की से बाहरझांका और पल्लवी को झिंझोड़ा और कहा - माँ उज्जैन आ गया है ।हाँ सब सामान समेट लिया है , चलो निकला जाये , विमल बोले।भीड़ के सरकते ही सबसे पहले पल्लवी उतरी फिर पीछे से गुंजा और विमल सामानों के साथ ।प्लेटफ़ार्म पर चारों ओर दीवारों परमहाकाल के चित्र देख पल्लवी का मन शिवमय हो उठा , भीतर ख़ुशियों की लहरें ठाठें मार रही थीं , गदगद् मन से गुंजा का हाथ कसकर थाम कैब की तरफ़ खींचे लिये जा रही थी तभी गुँजा बोल पड़ी ओह ! मम्मा छोड़ो भी, लगेज रखने में पापा की मदद तो करने दो ।अरे , हाँ बेटा मैं बैठती हूँ कैब में पल्लवी अपनी करतूत पर ज़रा झेंपती हुई बोली । रास्ते भर ड्राइवर बताता रहा कि महाकाल मंदिर भी बहुत क़रीब है और क्षिप्रा नदी , हरसिद्धि मंदिर भी बहुत पास हैं और आप पैदलही सारी जगहों में घूम सकते हैं। वैसे होटल से भी सारे स्पॉट्स तक घुमाने का इंतज़ाम रहता है , आप चाहें तो ऑटो या टैक्सी भी लेसकते हैं ।यदि इंदौर और ओंकारेश्वर जाना हो तो आप मुझसे संपर्क कर सकते हैं साब ,कहते हुए उसने अपना बिज़नेस कार्ड विमल कीओर बढ़ाया । कैब ड्राइवर अपनी तरफ़ से सारी जानकारी दे रहा था और हम सब चुपचाप सुन रहे थे ।लीजिए साहब आपकी मंज़िल आगई , कहते हुए उसने गाड़ी को ठीक होटल के सामने रोक दिया ।कमरे में जाकर सब बारी - बारी से फ्रेश हुए फिर थोड़ा आराम कर नीचे उतरे ,खाना- पीना खाने के बाद रिसेप्शन से पता किया किभस्मारती देखने की क्या सुविधा उपलब्ध है , तो मालूम हुआ होटल ने सारा अरेंजमेंट कर दिया है और कल सुबह दर्शन के लिए जाना है, पल्लवी के तो जैसे पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे ,आख़िर वर्षों के अरमान जो पूरे होने वाले थे उसके । अलस्सुबह उठकर नहाने के बाद सुंदर सी साड़ी पहन लियासोचा गुँजा को जगा दूँ, पर गुंजा तो पहले से ही तैयार थी सबुज रंग की साड़ी में बड़ी प्यारी लग रही थी , तभी विमल धोती पहन करसामने आये तो पल्लवी के साथ गुंजा भी हँस पड़ी, दोनों को हँसते देख विमल ने खुद को आईने में देखा ।अरे , ड्रेस कोड है तो पहनना हीपड़ेगा न् थोड़ा खिसियाते हुए विमल ने कहा ।अरे माँ अब जल्दी चलो भी , समय हो चला है और वहाँ लंबी लाइन में भी खड़ा होना हो शायद - गुंजा ने कहा ।फटाफट तीनों नीचे उतरे और रिसेप्शन में चाभी सुपुर्द कर नंगे पाँव मंदिर की ओर चल पड़े ।तीन दिनों की यात्रा पूरी कर चौथे दिन वापस जमशेदपुर के लिए निकले , ट्रेन राइट टाइम थी , किसी तरह की असुविधा नहीं हुई परवापसी में थकान सी लग रही थी , पल्लवी निचले बर्थ पर लगभग सो चुकी थी ।विमल और गुंजा भी अपने अपने मोबाइल फ़ोन में व्यस्तहो गए ।ईश्वर की कृपा से पूरी यात्रा निर्विघ्न पूरी तो हो गई पर जमशेदपुर पहुँचते ही दूसरे दिन ही पल्लवी ने ब्लड- यूरिन टेस्ट करवाना ज़रूरीसमझा और रिपोर्ट ले कर शाम को डॉक्टर के पास गई , रिपोर्ट देखते ही डॉक्टर ने एडमिट होने का निर्देश दिया, पल्लवी के साथ गुंजाथी , डॉक्टर की बात ने उसे असमंजस में डाल दिया , सो उसने छूटते पूछा डाक्टर एडमिट क्यों करना पड़ेगा ?यूरिन में बहुत ज़्यादा इंफ़ेक्शन होने के कारण इनके कुछ और टेस्ट्स करवाने की आवश्यकता है ,और आगे के इलाज के लिए मैंसीनियर डाक्टर को रेफ़र भी कर रहा हूँ ।पल्लवी के चेहरे पर चिंता साफ़ झलक रही थी, मम्मा डोन्ट वरी , एवरीथिंग विल बी ऑलराइट बोल कर गुँजा ने पापा को कॉल लगायाऔर पूरी बात बताई ।मम्मा , पापा ऑफिस से सीधे घर जा रहे हैं, वहाँ से तुम्हारे लिए कुछ ज़रूरी सामान और कुछ किताबें लेकर आ रहे हैं ,तबतक हमएडमिशन की कुछ ज़रूरी औपचारिकताओं को पूरी कर लेते हैं ।कह कर गुंजा सिस्टर के साथ अंदर चली गई । पल्लवी वहीं कॉरिडोर मेंखड़ी आते जाते मरीज़ों और लोगों का मुआयना करने लगी। तभी सिस्टर के साथ गुंजा बाहर आई , चलो माँ , फ़ीमेल वार्ड बेड नंबर 65 आपको मिला है , केबिन ख़ाली नहीं है, ख़ाली होते हीतुम्हें अलॉट कर देंगे, ऐसा नर्स ने कहा है ।तभी सामने से विमल हाथ में बैग लेकर आते दिखे । लो पापा भी आ ही गए ।तीनों हॉल में बेड नंबर ढूँढते हुए पैंसठ नंबर पर जा कर देखा , साफ़ सुथरे बेड पर अस्पताल का गाउन , तौलिया,कंबल वग़ैरह रखा हुआथा , पल्लवी बेड पर बैठ गई और विमल और गुंजा पास रखे चेयर पर ।पल्लवी चुपचाप पूरे हॉल में नज़र दौड़ाने लगी , ज़्यादातर बेड पर मरीज़ों से भरे थे । दो - एक ख़ाली भी थे ।तभी पल्लवी की नज़र बाज़ूवाले बेड पर पड़ी एक महिला,जो कम उम्र की लग रही थी , पूरी तरह से ख़ुद को ढक कर दूसरी करवट लेटी हुई थी ।लो माँ सिस्टर आ गई- गुंजा ने कहा ब्लड-प्रेशर, बॉडी टेम्प्रेचर चेक किया और कुछ पूछताछ कर नोट कर बेड के पायताने रिपोर्ट टांग दिया और पल्लवी को गाउन पहनने कीहिदायत देकर चली गई ।समय हो रहा था गुंजा और विमल को जाना था , गुंजा माथे पर चुम्मी देकर बोली - कल आते हैं मॉम , आपचिंता मत करना ।विमल ने माथे पर हाथ फेरा और कहा - डॉक्टर गोस्वामी यूरोलॉजी स्पेशलिस्ट हैं, उनकी देख-रेख में आप जल्दी ही स्वस्थ हो जायेंगीं, घबराने की ज़रूरत नहीं है ।अच्छा कल आते हैं हमलोग - कहकर दोनों बाहर की ओर निकले , गुंजा बार -बार पलट कर देखती और हाथहिलाती रही जब तक आँखों से ओझल न हो गई । दोनों के जाने के बाद पल्लवी ने वॉश रूम जाकर अस्पताल का गाऊन पहना और अपनी चीजों को बेड के पास टेबुलनुमा कपबोर्ड मेंअच्छी तरह रख बेड पर अधलेटी हो कर कुछ पढ़ने की कोशिश करने लगी । तभी नर्स फिर आई तो पल्लवी ने पूछा डॉक्टर कब विज़िट करेंगे सिस्टर ?मैडम आज डाक्टर एक बार विज़िट कर चुके हैं दोबारा नहीं आयेंगे , कल संडे , छुट्टी का दिन है , कोई इमरजेंसी हो तभी आयेंगे वरनाअब सोमवार को ही डॉक्टर विज़िट करेगा और हाँ, ये दो कंटेनर रखा है कल सुबह अपना स्टूल और यूरिन इसमें कलेक्ट कर वहाँ टेबलपर रख देना , कह कर नर्स दूसरे मरीज़ के पास चली गई ।शाम कब ढल गई पता ही न चला , अजनबी माहौल में खुद को एडजस्ट करने में समय लग रहा था । पल्लवी दूर खिड़की से बाहर देखनेकी कोशिश करने लगी पर कुछ नज़र नहीं आया तो कुछ देर आँखें बंद चुपचाप लेटी रही । रात के साढ़े सात बजे से ही डिनर सर्व करने , बडी सी ट्रॉली आ गई थी और बॉय सबके चार्ट के अनुसार खाना परोस रहा था , पल्लवी को गर्म खाना अच्छा लगा और स्वीट डिश और सूप तो उसे बेहद पसंद आया । खाना खा कर उसका मूड कुछ ठीक हुआ परपास के बेड पर लेटी महिला ने खाना छुआ तक नहीं , ये देख उसे अजीब लगा । तभी अचानक वह मरीज़ उठी और छोटी बोतल से पानी पीने की कोशिश करने लगी मुश्किल से दो- तीन घूँट ही पी पाई होगी किकराहने लगी, पल्लवी ने ध्यान से उसकी ओर देखा तो चौंक गई , उसका आधा चेहरा झुलसा हुआ था।पल्लवी को लगा कि उसकी मदद करे तो उसने बेल बजाकर सिस्टर को बुलाया, सिस्टर ने उसे पानी पिलाने में मदद की और कंबलओढ़ा दिया और सूप सामने टेबल पर रख कर चली गई । कुछ देर बाद पल्लवी को लगा जैसे वह मरीज़ उससे कुछ कहना चाहती है , पल्लवी उसे देख कर मुस्कुराई । तब बड़े ही संकोच से उसनेपल्लवी से पूछा - दीदी , आपको शायद मालूम नहीं कि मैं यहाँ इस बेड पर पंद्रह दिनों से हूँ पर जो भी बगल के बेड पर आता मेरी शक्लदेखते ही भाग खड़ा होता , सारी मरीज़ों ने सिस्टर से शिकायत की कि रात में उन्हें मेरा चेहरा डरावना लगता है सो कोई मेरे पास वाले बेडपर आना नहीं चाहता ।एक औरत तो मेरी तरफ देखते ही ज़ोरों से रोने लगी , बेड छोड़कर भागने लगी पूरे वार्ड में तमाशा हो गया । तब से आप पहली पेशेन्ट हैंजो मेरे बग़ल वाले बेड पर हैं ।एक बात पूछूँ दीदी ? उसकी तरफ़ से एक प्रश्न उछला - कहीं आप को भी मेरे जले चेहरे से डर तो नहीं लग रहा ?पल्लवी क्या जबाब दे , सोचने लगी । थोड़ी उलझन तो मन में थी सो चुप रही और उसकी बातें सुनती रही ।फिर बात बदलने की गरज़ से पल्लवी ने कहा -अरे , मैं तो तुम्हारा नाम पूछना ही भूल गई ।गहरी साँस लेते हुए उसने जबाब दिया - चंदा , मेरा नाम चंदा है दीदी ।ओह ! कितना प्यारा नाम है चंदा पल्लवी बोली हूँ्््््् । एक मौन पसर गया वातावरण में।कुछ पलों के बाद वो फिर बोलने लगी , छत की ओर देखती जैसे ख़ुद से बातें कर रही हो , पल्लवी की आँखों से भी नींद ग़ायब थी सोलेटे -लेटे सुनती रही ।चंदा कंठ तक भरी थी । उसे शायद किसी का इंतज़ार था जिसके सामने अपने भीतर उठ रहे ग़ुबार की पोटली खोल सके । उसकी आवाज़ पल्लवी के कानों सेटकरा रही थी , वह बोलती ही जा रही थी । हर लड़की के अपने अरमान होते हैं दीदी , मेरे भी थे , पढ़ाई लिखाई में मैं अव्वल थी सो आगे पढ़ाई पूरी कर पी एच डी करनाचाहती थी , डिग्री कॉलेज में पढ़ाने का लक्ष्य था मेरा पर , पोस्ट ग्रेजुएशन करते ही घर में शादी के लिए परिवार वालों ने हाय- तौबामचानी शुरू कर दी ।दादी को चिंता थी कि लड़की बाइस साल की हो रही है कहीं घर ही न बैठी रह जाये तिस पर साँवली लड़की काजल्दी ब्याह होना भी मुश्किल है । माँ भी दादी के सुर में सुर मिलाती , ख़ुद को कोसती रहतीं , बेटा न जना मैंने तो भोगना भी तो पड़ेगा न, इस लड़की का आसन कितना भारी है कि उठता ही नहीं, ऐसी बातें मेरे कानों में पिघला शीशा घोलतीं , जी करता सामने पड़ी खाने कीथाली दीवार पर ज़ोर से दें मारूँ । मैं प्रतिवाद करती , चीखती पर उनकी अनर्गल बयानबाज़ी पर कोई असर नहीं होता । बाबूजी कुछ न कहते पर इन बातों का विरोध भी ना करते। अचानक एक दिन मेरी सगी मौसी एक लड़के का रिश्ता लेकर आईं । खाता-पीता घर था , अच्छी कंपनी में नौकरी , बस और क्या चाहिए । माँ तो बिना देखे लट्टू हुई जा रही थीं ।तब मौसी भी अकड़ कर बोलींदेख लो जिज्जी बढ़िया रिश्ता है, इसके पहले भी दसियों लड़कों को मना कर चुकी है बिट्टो रानी , इस बार जो पसन्द नहीं आया फिर तोहम तो न पड़ेंगे बीच में । सच कहूँ तो दीदी अबकी बार , दिनरात की चिकचिक से मैं भी निजात चाहती थी सो लगा लड़का और घर ठीक ठाक है तो हाँ हीकर दूँ, पर , हाँ कहने से पहले मैंने भी कह दिया कि शादी के बाद भी मैं अपनी थीसिस ज़रूर पूरी करूँगी, ये आपलोग लड़के वालों से ज़रूरबता दें । हाँ - हाँ क्यों नहीं , वे लोग भी तो चाहेंगें कि बहु अपनी पढ़ाई पूरी करे , माँ अपनी तरसे आश्वस्त थीं ।मेरे हामी भरते ही , माँ के तो तेवर ही बदल गए और दादी इतना लाड़ बरसाने लगीं कि ऊब सी होने लगती ।सुबह सुबह ही राग अलापनाशुरू, नहाने जाने से पहले कभी दही बेसन की कटोरी थमातीं तो कभी होंठों पर मलाई लगाने कहतीं।मैं बस चिढ़ती, पैर पटकती पर उनपर कोई असर ना होता।क्या सारा दिन किताब में मुड़ी गोते रहती हो, कभी हँस बोल भी लिया कर लड़की- दादी टोकती देख चंदा अगले हफ़्ते लड़के वाले आ रहे हैं , अब उनके सामने कोई नाटक मत पसारना , माँ बोलती ही जा रही थीं - अच्छा लड़का है , ससुराल वाले भी अच्छे हैं और वैसे भी तुझे कौन सा ससुराल में रहना है , लड़का जहाँ काम करेगा वहीं उसी के साथ ही तो रहना है जैसेमुझे नहीं ख़ुद को सांत्वना दे रही हों । लड़के वाले आये और लड़का भी , बातचीत हुई और शादी तय हो गई ।सच कहूँ दीदी तो मैं भी मन ही मन ख़ुश थी कि लड़का अच्छा है, चलो ज़िन्दगी अच्छी कटेगी ।शादी हुई , ससुराल आई तो दिल में अरमान जागने लगे ,इतना अच्छा दुल्हा मिलेगा सोचा ना था ।पूरा घर भरा था , मानव से अकेलेमिलने का समय और मौक़ा ही नहीं मिल रहा था ।आख़िर, रात में बिस्तर पर लेटे -लेटे मुझे नींद आ रही थी , तभी दरवाज़ा खटका औरमानव ने अंदर आ कर दरवाज़ा भीतर से बंद कर लिया , मैं उठ कर बैठ गई लेकिन मानव ने वहीं पास में रखा चादर तकिया लिया औरपास लगे सोफ़े पर सो गए ।मैं हैरान थी शादी की पहली रात कोई ऐसा करता है ! किस बात पर नाराज़गी है भला , मैंने तो कुछ किया हीनहीं ,मैं सोचती रही । आख़िर मुझसे रहा न गया तो उठ कर मानव के पास गई और उनके माथे को छुआ ही था कि छिटक कर उठ बैठे और कहने लगे - देखो चंदा , शादी तो मैंने तुमसे कर ली है पर हम पति - पत्नी का रिश्ता नहीं रख सकते ।मैं अवाक्,ये क्या सुन रही हूँ मैं ? फिर आपने ब्याह किया ही क्यों ? माँ को बहु चाहिए थी और मैं उन्हें मना नहीं कर पाया - मानव ने कहा । मतलब ? आपने अपनी माँ की ख्वाहिश पूरी करने के लिए मेरी बलि चढ़ाने में बुद्धिमानी समझी- मैं मद्धिम स्वर में चीखी ।पर मेरे आगे हाथ जोड़े मानव कातर स्वर में बोले - यहाँ तुम्हें किसी तरह की तकलीफ़ नहीं होगी चंदा , प्लीज़ ये बात बाहर जाने मत देना, बाहर बहुत सारे मेहमान हैं ।मतलब यहाँ मेरी ज़िन्दगी ख़त्म हो रही है और आपको मेहमानों की पड़ी है ? मैं बोलती जा रही थी और वह काठ बना सुन रहा था , परउसे न पिघलना था ना वह पिघला ।जीवन की सबसे लंबी रात मैंने कैसे काटी , क्या बताऊँ दीदी ? अब तक चुपचाप पूरी कहानी सुन रही पल्लवी अचानक उठ कर बैठ गई , उसके माथे पर पसीने चुहचुहाने लगे थे , गला सूख रहा था सोएक घूँट पानी पिया फिर सिरहाने के तकिए के सहारे अधलेटी होकर पूछा - एक बात समझ में नहीं आई , क्या मानव का पहले से कोईअफ़ेयर था ? पहले मुझे भी ऐसा ही लगता था दीदी पर मैंने बाद में जाना कि बात कुछ और थी , लंबी साँसें भरते हुए चंदा बोली ।मैं कुछ कहती भी तो किससे कहती , मायके वालों को कुछ भी कहना संभव ही न था ।कोई मेरी बात पर विश्वास ही नहीं करता ।फिर सोचा शायद कुछ दिनों में सब सामान्य हो जाये ,पर साल भर बीतने को आये, कुछ नहीं बदला । एक दिन हम दोनों के बीच ख़ूब बहस हुई, मानव ने कहा तुम चाहो तो मायके वापस जा सकती हो ,मैं भी ज़िद पर अड़ी रही कि मायकेनहीं जाना मुझे , आख़िर तुमने शादी क्यों की मुझसे ?हाँ की , पर मैं इस संबंध को नहीं मानता - अपनी धौंस दिखाते हुए मानव तेज़ी से दरवाज़ा बंद कर ,घर से बाहर निकल गए और बिनाकुछ बताए दो दिनों बाद घर वापस आये । तब तक शायद उनका ग़ुस्सा ठंडा हो गया हो , पर मैं अनमनी थी और गहरे सोच में डूबी थी ।बस जैसे -तैसे दिन कटते गए ।दीदी , आप भी सोच रही होंगी मैं क्या अपना दुखड़ा लेकर बैठ गई । दस बज गए , अब आप सो जाइए ,चंदा ने कहा ।अरे नहीँ चंदा , अब तो तुम्हारी पूरी बात न सुन लूँ तो शायद नींद भी न आये , वैसे भी कल संडे है पूरे दिन सोना ही है, डॉक्टर भी तोसोमवार को ही आयेंगे, पल्लवी बोली ।हूँ्््््् चंदा ने गहरी साँस लेते हुए अपनी आपबीती जारी रखते हुए बोलने लगी-हाँ तो दीदी , बस ऐसे ही बीत रहे थे हमारे दिन , बीच में सुलह होती फिर खटपट । इस बीच मैंने अपना पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई परलगाना शुरू किया क्योंकि मुझे पीएचडी करना था ताकि कॉलेज में पढ़ा सकूँ , बीच-बीच में अपने गाइड से भी मिलने जाना होता । दिनको बीतना ही था , सो बीत रहे थे । उस दिन भी मैं अपना काम करने गई और मानव को इसकी औपचारिक सूचना भी दे दी कि शायद आने मे देर हो जाये और घर की एकचाभी मैंने अपने पास रख ली । पर , संयोग से मेरा काम तीन-चार घंटों में ही हो गया तो मैं घर लौट आई । आकर देखा घर के बाहर एक बाइक खड़ी है तो सोचा शायदमानव से कोई मिलने आया होगा । चाभी तो थी ही मेरे पास , दरवाज़ा खोल कर भीतर आ गई, ड्राइंग रूम में किसी को ना पा कर अजीब लगा , अपनी शूज़ , रैक पररख सोचा बेडरूम में अपने पर्स और किताबें रख दूँ , सो बेडरूम गई ,वहाँ जाते ही मेरा चेहरा फक्क़ पड़ गया , जो दृश्य मेरे सामने थाउससे मेरा दिमाग़ एकदम सुन्न हो गया ।मानव को उनके पुरूष मित्र के साथ ऐसी अवस्था में देखूँगी कभी सोचा ना था । मैं तेज़ी से ड्राइंगरूम की ओर भागी , समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ फिर किचन में जाकर सिंक का नल खोल कर ज़ोर -ज़ोर से पानीके छींटे चेहरे पर मारने लगी । बदहवासी में कुछ ना सूझा तो पास रखे पंप वाले स्टोव को जलाने की कोशिश की फिर ज़ोर ज़ोर से पंपकरने लगी , बस उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं , होश आया तो आई सी यू के बेड पर पड़ी थी ।ओह ! पल्लवी ने आँखें मूँद लीं , कैसी है ये ज़िन्दगी ।चंदा चुपचाप पड़ी रही अपने बिस्तर पर बिना हिले डुले ,शायद हल्क़ा महसूस कर रही थी , बाहर कितना कुछ तैर रहा था , लिजलिजासा ।पूरी कहानी सुन कर पल्लवी को तो जैसे करंट लगा पर , बड़ी मुश्किल से ख़ुद को संयत करती हुई बोली - ये ठीक है चंदा कि हर व्यक्तिको स्वतंत्रता होनी चाहिए जीने की , अपनी यौनिकता ज़ाहिर करने की , पर ऐसी दोहरी मानसिकता का क्या अर्थ ? किसी मासूम का जीवन सिर्फ़ इसीलिए बर्बाद कर दिया कि उस पर घर वालों का दबाब था ? इतनी तो हिम्मत होनी चाहिए कि सच बोल सकें ! पल्लवी पूरे रोष में थी , अब क्या सोचा तुमने ? उसने पूछा ।दीदी अस्पताल से छुट्टी मिल जाए पहले , साथ रहने का तो सवाल ही नहीं ,अब मायके वालों के पास भी नहीं जाना । होस्टल में रहकरपार्ट टाइम जॉब कर लूँगी और थीसिस तो क़रीब क़रीब पूरी हो ही चुकी है , डिग्री मिलते ही कॉलेज ज्वाइन कर लूँगी ।फ़िलहाल इतनाही सोचा है आगे देखती हूँ ज़िन्दगी किस मोड़ जाती है कहते हुए चंदा ने गहरी साँस ली , शायद बहुत थक गई थी , शायद दर्द भी हो रहाहो ।तभी नाइट शिफ़्ट की सिस्टर्स भी आ गईं और हर बेड पर जा कर पेशेंट का बॉडी टेम्परेचर वग़ैरह चेक करने लगी थीं ।हमें जागे देखकरसिस्टर बोली-अरे तुम लोग सोया नहीं अब तक ? इतना कहकर सिस्टर ने वहीं पास की जलती बत्ती बुझा दी ।कमरे में ख़ामोशी छाई थी , पल्लवी ने करवट बदला तो पाया सामने एक सपाट दीवार , हल्की रौशनी में चमकता सफ़ेद दीवार ....धीरे- धीरे उस दीवार पर एक आकृति उभरने लगी थी , सलीब की आकृति और उस पर टँगी दीख रही थी एक लड़की , पल्लवी ने अपनी आँखोंको कस कर मूँद लिया , वह लड़की से लिपट कर रोना चाहती थी, उसकी पीठ थपथपाना चाहती थी , उसे अपनी नींद देना चाहती थी .... गुंजा ... गुंजा पल्लवी बुदबुदा रही थी ...... उसे लगा गुंजा , उसकी बेटी उसके सिरहाने बैठी है , उससे कुछ कहना चाहती है ... पर उसकेस्वर अस्फुट थे ... पल्लवी को गहरी नींद आ रही थी ।