वर्तिका - हर नारी

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वर्तिका...नारी रूप छिछली नदी का ना ठहरा हूँ पानी, बहती नदी सी है, मुझमें रवानीथाह अंतर का मेरे ना तुम पा सकोगे बतला दूँ तुमको, मैं अपनी कहानी अंबर सी विस्तृत हूँ उजली ज्यों दर्पण प्यार मुझपे लुआओ, मैं कर दूँ समर्पण धीरज में धरती को, छोड़ा है पीछे रक्त अपने से मैंने, लाल अपने हैं सींचेरक्त माँ के मेरी से, बनी मेरी काया प्यार से मुझसे मांगो,दूंगी शीतल मैं छाया। मैं प्यासा हूँ सागर,प्यार का किन्तु गागर करती सम्मान लेकिन,सिमटूं ना ओढ चादर।मन में आशा मेरे है, मैं आशा की जाई फूल मन में खिले मैंने खुशियाँ लुटाईअंक मेरे में खेलो, गले से लगा लो ममता मुझमें भरी, प्यार मेरे को