आस्था

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लंबा वक्त समय बिताने के बावजूद हम कभी एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल नहीं हुए। यही त्रासदी हैं की हमने कभी अपना जन्मदिन साथ नहीं मनाया। बीते दो सालों से जन्मदिन पर बधाई मैसेज का धन्यवाद अभी तक टाल रहा। अब शायद उसे भी धन्यवाद सुनने में दिलचस्पी ना हो। असल में किसी संबध के खत्म होने के बाद एक जन्मदिन की तारीख बची रह जाती है, जो समय से पहले याद होती है। और मुझे यह दिन अदालत में पेशी देने जैसा लगता है, जिसमें एक दिन पेशी देने के बाद हम फिर सालभर के लिए बाईजत बरी हो