ज़िन्दगी और थैला - एक विचारबस यूं ही एक ख्याल आता है, ज़िन्दगी और थैला, कितने एक जैसे हैं, कभी उस नज़र से देखो, कभी उस भाव से परखो, तू यू लगे जैसे एक दूसरे का प्रतिरूप हैं दोनों -यूँ घर से निकलते थैला लिए, कुछ लाने को कुछ पाने को,रखने, चीजों को, दुनिया भर की,सारी भौतिकता समेट, उसे सदा के लिए अपना बनाने कोतमाम उम्र की अभिलाषाओं को, साकार करनेस्मृति पटल पे उकेरी यादों को, सहेज कर रखनेकुछ बिखरे लम्हों को, कुछ अधूरे ख्वाबों को पूरा करने, अनकही, अधूरी रह गई तमाम इच्छाओं को,कभी सोचो तो लगता है कितनी