--राह अपनी मोड़ दो-- शाह के दरबार कीं, खूब लिख दी है कहानी। शाज, वैभव को सजाने, विता दी सारी जवानी।। चमन की सोती कली को, राग दे, तुमने जगाया। अध खिली को प्रेम दे कर, रूप यौवन का दिखाया।। नायिका की, हर नटी पर, गीत गाकर, तुम लुभाऐ। दीन, पतझड़ की कहानी, के कभी क्या गीत गाए।। फूल पतझड़ के चुनो अब, छोड़कर, वैभव-खजाने। वीरान को, सुन्दर बनाने। गीत धरती के ही गाने।। और कब तक, यूँ चलोगे। अठखेलियां अब छोड़ दो। वीरान को, सुन्दर बनाने, राह अपनी, मोड़ –दो।। --वेदना की यामिनी--