एपिसोड---35 अतीत के स्मरण की तरंग मुझे अपने वेग में उलझा कर दूर खींच ले जाने को व्याकुल हो उठी है। मन बहुत भारी है। जाने कितने ही भाव कसक उठे हैं । भीतर दर्द ही दर्द उमड़ने लगा है। वैसे तो सभी अपने हैं लेकिन एक ही मां बाप से जन्म लेकर जिस बंधन में हम गुंथे होते हैं उसमें से एक भी धागा टूट जाए, तो ढील पड़ ही जाती है। अकस्मात ही छोटी बहन का जाना ऐसी ठेस दे गया, मानो ढलते हुए आषाढ़ के सूरज को पीले उदास बादलों की एक झीनी तह ने ढंक लिया