तुम्हारे बाद - 1

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1 ---- दिल के दरवाज़े पे साँकल जो लगा रखी थी उसकी झिर्री से कभी ताक़ लिया करती थी वो जो परिंदों की गुटरगूं सुनाई देती थीउसकी आवाजों को ही माप लिया करती थीन जाने गुम सी हो गईं हैं ये शामें क्यूँऔर तन्हाई के भी पर से निकल आए हैंमेरे भीगे हुए लमहों से झाँकते झोंकेआज पेशानी पे ये क्यों उतर के आए हैं कुछ तो होता ही है, भीतर बंधा सा होता है जो चीरता है किन्हीं अधखुले अलफ़ाज़ों को क्या मैं कह दूँ वो सब कहानी सबसे ही या तो फिर गुम रहूँ, और होंठ पे उंगली रख लूँ ??????     2