सलाखों से झाँकते चेहरे - 10 - अंतिम भाग

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10 -- एक भद्र महिला को अपने सामने देखकर लुंगी वाले महानुभाव कुछ खिसिया से गए, उन्होंने अपनी लुंगी नीचे कर ली फिर अपने पास खड़े हुए दो युवा लड़कों को देखकर उनमें से एक से कहा ; "रौनक ! इसको अंदर लेकर कोठरी में बैठाओ, मैं बाद में इससे बात करूँगा --" "जी, कहिए --" वे लुंगी वाले महाशय इशिता की ओर मुखातिब हुए | "मैं डॉ.इशिता वर्मा, अहमदाबाद से ---मि. कामले के साथ ----" "अरे ! आपको तो आज जेल की मुलाकात लेनी है, लेकिन आप इस तरह से ?---माफ़ करिए, मैं यहाँ का जेलर अनूप सिन्हा ----"