आज काफ़ी अर्से के बाद मैं कोई फ़िल्म देखने टॉकीज़ तक आई हूं। मेरी कॉलोनी के जिस शख़्स ने भी यह फ़िल्म देखी उसने इसकी तारीफ़ की। अपने भतीजे-भतीजी की ज़िद पर उन्हें यह फ़िल्म दिखाने लाना पड़ा। उनके साथ उनके दो दोस्त और भी हैं। सिनेमा हॉल में दाख़िल होते ही दाएं ओर की टिकट विंडो से मेरा भतीजा टिकट लेने लगता है। मैं हॉल की गैलरी में धीमे-धीमे आगे बढ़ती हूं। मैं कुछ सोच में हूं कि मेरी नज़र गैलरी के बांई ओर खड़े एक जोड़े पर पड़ती है। लड़के