अलविदा

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अर्जुन इलाहाबादी।जिंदगी को अच्छे से जीने की जब भी सोचा तो रास्ते बहुत कठिन निकले।कभी पड़ोसियों से झगड़ा,तो कभी परिवार में झगड़ा। कभी खुद को कंसन्ट्रेट नही कर पाया।यहाँ एक बात मैंने और सीखी "आप दुनियाँ में हर किसी को खुश नहीं रख सकते"। इस लिए दुनिया की परवाह करना छोड़ देना चाहिए।सच कहूं तो जीवन जीना इतना आसान नही है।अगर जिंदगी जीना इतना आसान होता तो बहुत सारे दार्शनिक,चिंतक,विद्वान "जीवन जीने की कला "पर किताबें नहीं लिखते।ऐसा नहीं की सारे लोग एक जैसे ही होते हैं ।जिस तरह से पेड़-पक्षियों में,जीवो में,विभिन्नता है वैसे ही इंसानों में भी विभिन्नता