मैंने बड़ी आत्मीयता से दोनों की ओर हाथ जोड़े। मगर ये क्या? वो दोनों आश्चर्य से मेरी ओर देखने लगे। भाई ने कुछ अजीब सी नज़र से देखा, फ़िर बोला - तुमने किसी और को देखा होगा। ये तो तुम्हें पहचान नहीं रहे। इनसे कहां मिले होगे तुम? ये तो दोनों मेरे दोस्त हैं। मैं एक क्षण को सकपकाया पर फ़िर मैंने थोड़ा जोर देकर उन दोनों से कहा - अरे, आपको याद नहीं, कल जब आप दोपहर में हमारे घर आए थे तब अकेला मैं ही तो वहां था। हम तीनों ने मिल कर ही तो भैया को ढूंढा