बैंगन - 8

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8 मेरा असमंजस बरकरार था। आख़िर ये माजरा क्या है? ये सब लोग पूरे इत्मीनान से बैठे हैं और कह रहे हैं कि ये सब घर में ही थे, पुलिस कैसे और कहां से आ सकती है, जबकि मैंने ख़ुद अपनी आंखों से पुलिस को यहां आते और ख़ुद मुझसे ही तहकीकात करते हुए देखा। कोई भी गलत- फहमी आख़िर हो ही कैसे सकती है। मैंने मन ही मन सोचा कि मैं ख़ामोश होकर इन लोगों की बात स्वीकार कर लूंगा पर अपनी तहकीकात जारी रखूंगा और इस रहस्य का पता लगा कर ही रहूंगा। मैंने भाई और भाभी के