कुंठित

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बसुधा का आज सुबह से ही मन बहुत खिन्न था।उसकातनिक भी मन नहीं लग रहा था।ऐसा लग रहा था कि यहाँ से कहीं भाग जाए ,ऐसी जगह,जहाँ अपनेपन का अहसास हो।ऐसी जगह जहाँ उसे समझा जाये। ऐसी जगह,जहाँ वह अपने मन की पीड़ा, सुख- दुख बांट सके। ऐसी जगह जहाँ उसे अकेलेपन का अहसास न हो। ऐसी जगह जहाँ कोई चिंता तनाव न हो।क्या ऐसी जगह है दुनिया में ? उसने खुद से ही प्रश्न किया,शायद नहीं। फिर क्यों ऐसी चाह ? जिस घर में ,जिस व्यक्ति के साथ वह पिछले 35 बर्ष से रह रही है,क्यों वह अपना सा