हमेशा-हमेशा - 3

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अब्बू के साथ घर पहुँची शमा किसी मशीन की तरह अम्मी से मिली और सीधे अपने कमरे में चली गयी। 'उसे अपने अतीत के हादसों से उबरने के लिए कुछ वक़्त चाहिए' ऐसा सोचते-सोचते जब काफ़ी वक़्त बीत गया और शमा की चुप्पी नहीं टूटी तो कुरैशी साहब ने शिमला में बस चुके अपने दोस्त को बुलाने का सोचा। उन्होंने पूजा को फ़ोन किया और सब कुछ बताकर इल्तिजा की कि वो अपने पिता के साथ जल्द लखनऊ आ जाए। अपने दोस्त का मैसेज मिलते ही अग्रवाल साहब ने टिकट्स बुक किए और एयरपोर्ट पहुँच गये। जुब्बड़हट्टी एयरपोर्ट से लखनऊ