कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग46)

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अब रूठे हुए को कैसे मनाये मुझे तो पता भी नही।नया नया कदम रखा है इस राह पर तो कैसे पता करूँ।अप्पू तुम भी न चिल्ला लेती,नाराजगी जता देती मुझ पर तो तुम्हारा सारा गुस्सा निकल जाता लेकिन नही।बस खामोश हो गयी और बोली भी तो क्या हम ये श्रुति के रूम में लेकर जाते हैं ताकि आगे जरूरत पड़े तो कहीं और ढूंढना न पड़े।बोली तो ऐसे जैसे मैं हर बार ये ही गलती दोहराऊंगा। अब क्या करूँ मैं।काश ये ऑफिस का कोई प्रोजेक्ट होता।तो यूँ ही हैंडल कर लेता मै।खुद से बड़बड़ा कर कहते हुए वो इधर से