प्रतिशोध--भाग(९)

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योगमाया की बात सुनकर सत्यकाम कुछ आशंकित सा हुआ,उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं अब माया से प्रेम स्वीकार करूँ या अस्वीकार क्योंकि माया ने तो मेरे समक्ष नेत्रहीन बनने का अभिनय किया,साधारण लड़की बनकर मेरे हृदय के संग खिलवाड़ किया और इतना ही नहीं उसने विश्वासघात भी किया है मेरे संग की वो निर्धन है,ना जाने कितने झूठ बोले मुझसे।। किन्तु, मेरा हृदय तो कहता है कि अब भी मुझे उससे प्रेम हैं, कुछ भी हो उसने मेरे जीवन को एक नई दिशा प्रदान की है, उसने मुझे व्यवाहारिक होना सिखाया है, यदि मैने ये