रात्रि गहराने लगी थीं, चन्द्रमा का प्रकाश भी धूमिल सा था क्योंकि कल अमावस्या है, सत्यकाम ने मणिशंकर को पुकारा___ मित्र! सो गए क्या? किन्तु मणिशंकर ने सत्यकाम के प्रश्न का कोई उत्तर ना दिया,कदाचित वो निंद्रा में लीन था,अब तो सत्यकाम के हृदय में जो कौतूहल था उसे शांत करना उसके लिए सम्भव ना था,यदि माया उससे प्रेम करती है तो उसे स्वीकार क्यों नहीं कर लेती,ऐसा करके वो मेरे मन की शांति क्यों भंग करना चाहती है, सत्यकाम ने मन में सोचा।। अर्द्धरात्रि बीत चुकी थी परन्तु, सत्यकाम को अपने बिछावन पर निंद्रा नही आ रही