प्रतिशोध--भाग(५)

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उधर माया अपनी इस जीत पर अत्यधिक प्रसन्न थीं, उसे स्वयं पर गर्व हो रहा था कि जैसा वो चाहती थीं, बिल्कुल वही हो रहा है, सत्यकाम को मुझ पर दया है और इस दया को अब प्रेम में परिवर्तित होते देर नहीं लगेगी, जिस दिन उस ने अपने हृदय की बात मुझसे कही उसी दिन आचार्य शिरोमणि का नाम धूमिल हो जाएगा और मेरे प्यासे हृदय की प्यास बुझेगी___ माया ये सब मधुमालती से कह रही थीं,तभी मधुमालती बोली___ परन्तु देवी! कल रात को आप समय से अपनी झोपड़ी में ना पहुँच पातीं तो अनर्थ हो जाता,सत्यकाम