रात्रि हुई सत्यकाम अपनी कुटिया में पड़े पुवाल से बने बिछावन पर लेट गया, परन्तु निद्रा उसके नेत्रों से कोसों दूर थी,उसकी कुटिया वैसे भी एकांत में सबसे अलग थी इसलिए कम लोग ही गुजरते थे उधर से, उसका मन व्याकुल था वो किसी से वार्तालाप करना चाहता था अपने मन में हो रहे कौतूहल को किसी से कहना चाहता था परन्तु असमर्थ था,अपने समीप किसी को ना देखकर उसका मन कुछ गाने को करने लगा और वो अपने बिछावन पर लेटे लेटे वहीं भजन गुनगुनाने लगा जो प्रात: माया गा रही थी।। वो मन में सोचने लगा कि