एपिसोड---30 देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए... जी हां, यह खुली आंखों के देखे ख्वाब थे। सुनते हैं खुली आंखों के ख्वाब पूरे हो जाते हैं। बंद आंखों के ख्वाब तो आंखें खुलते ही रफूचक्कर हो जाते हैं। ख्वाबों के सिलसिले चल पड़े थे। मायके से तो लड़कियों का कभी मन भरता ही नहीं लेकिन एक दिन जाना ही होता है। सो भीगी आंखों से मन को सींचते हुए चल पड़े थे हम कटनी से औरंगाबाद। मैंने पूछा ही नहीं था कि हम वहां क्यों जा रहे हैं? और यह आदत जीवन पर्यंत चलती रही । "माझी मेरी किस्मत