दोपहर लगभग बारह बजे इच्छा पैकिंग मे व्यस्त थी कि तभी, डोरबेल बजती है | इच्छा दरवाजा खोलती है | गेट पर, अरे ! प्रभाकर जी आप? प्रभाकर "जी ! क्या मै अन्दर आ सकता हूँ |" इच्छा अपनी प्रतिक्रिया पर सकुचाते हुए "जी - जी ! बिल्कुल अन्दर आईये |" प्रभाकर की तलाशती नजरों को ताड़ते हुए इच्छा पूँछ बैठती है, " क्या हुआ प्रभाकर जी आप किसी को ढूँढ रहे हैं? " सकपकाते हुए नही वो !!आपके साथ जो थीं उषा नाम था जी उनका | इच्छा हाँ ! वो शादी की तैयारी मे लगी हैं कुछ खरीदारी