नहीं, बीणा को नहीं मालूम रहा..... जब भी उसकी बायीं दिशा से कोई कर्णभेदी कोलाहल उसके पास ठकठकाता और वह अपने बाएँ कान को ढँक लेती तो उसके दाएँ कान के परदे पर एक साँय-साँय क्यों चक्कर काटने लगती? अन्दर ही अन्दर! मन्द और मद्धम! कभी पास आ रही किसी मधुमक्खी की तरह गुँजारती हुई..... तो कभी दूर जा रही किसी चिखौनी की तरह चहचहाती हुई. नहीं, बीणा को नहीं मालूम रहा- उसके विवाह के तदनन्तर वह साँय-साँय उसके अन्दर से आने की बजाय अब बाहर से क्यों धपकने लगी थी? तेज़ और तूफ़ानी! मानो कोई खुपिया बाघ अपनी ख़ोर