जून की चिलचिलाती गर्मी में पैसिफिक मॉल के बाहर खड़ी सुमेधा मन ही मन सोच रही थी कि काश उसने ड्राइव करना सीख लिया होता तो आज उसे भरी दोपहरी में बाहर खड़े होकर यूं ओला कैब का इंतज़ार नहीं करना पड़ता। पौं पौं... गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ लगातार सुमेधा के कानों से टकरा रही थी मगर सुमेधा थी कि टस से मस होने को भी तैयार नहीं थी। ओ मैडम!एक्सक्यूज मी,सुनाई नहीं देता क्या? गाड़ी सुमेधा के सामने से गुजरती हुई थोड़ी दूर पर जाकर रुक जाती है और उसमें से एक युवक उतरकर सुमेधा की ओर बढ़ता