लिखे जो खत तुझे...

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वाओ समर !! तुम्हारी मम्मा तो कितना अच्छा और कितने तरह का खाना बना लेती हैं! काश कि आज मेरी मम्मा भी होतीं तो शायद वो भी मेरे लिए ऐंसा ही खाना बनातीं मगर मेरी मम्मा को तो मैंने बचपन में ही खो दिया था,कहते कहते एकता की आंखें नम हो गयीं। एकता क्या मेरी मम्मा तुम्हारी मम्मा नहीं हैं,कहते हुए समर ने एकता को अपनी बाहों में भर लिया और बड़े ही प्यार से उसनें एकता को ब्रेकफास्ट टेबल से टिकी कुर्सी सरकाकर उसपर बिठाया। दोनों लोग अब मिसेज़ राजपूत यानी कि समर की माँ के हाथ का बना