यादें आज न जाने क्यो मन में अजीब सी बैचेनी हो रही थी, शाम के छे बजने को थे,सूरज की किरणो की वो लालिमा, चारो तरफ ऐसे फैले हुए थी,मानो जैसे की पूरे वातावरण को किसी लालरंग की चादर ने अपनी आगोश में ले लिया हो। मैं इस नजारे को बड़े शांत चित्त होकर अपनी छत पर आराम कुर्सी लगाकर बैठे देख रहा था। घर से लगभग बीस कदम आगे बहुत बड़ा आम के पेड़ों का बागीचा था,जहां