यादों के झरोखों से—निश्छल प्रेम (8)

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यादों के झरोखों से—निश्छल प्रेम (8) आपके सामने प्रस्तुत है।मातृभारती के सम्मानित पाठकों को,सम्मानित रचनाकारों को नमस्कार । मैं भोजन बनाने के लिए रसोईघर में जा रही थी तभी मेरी मित्र ने मुझे दरवाज़े से पुकारा—- सुबह के समय मेरी मित्र शारदा का मेरे घर आना मुझे अचंभित सा लगा ।अपनी चिंता प्रकट करते हुए मैंने पूँछ ही लिया,क्यों क्या हुआ सब ठीक तो है। शारदा मेरी घनिष्ठ मित्रों में से एक थी मेरी चिंता को भाँपते हुए बोली— अरे सब ठीक है बैठने तो