३७. कुछ जटिलताएं दिल उदास हो गया. दोपहर के भोजन का भी मन नहीं किया. क्यूं होते हैं हम लोग इतने जटिल, सोचने लगी माधुरी. और यह तो वही परिवार है न जो हर दिन आरिणी को अपनी आंखों के सामने रखता था. आरव और उसकी मम्मी की कितनी प्रशंसा करती थी आरिणी. अब न जाने ऐसा क्या हुआ है कि आरिणी उन्हें एक पल भी नहीं सुहाती. जब भी बात होती है कुछ न कुछ तनाव! और आज तो इस तनाव की पराकाष्ठा ही हो गई, सोचा उन्होंने. उनका रोने का मन हो रहा था. इसी उधेड़बुन में शाम