वचन--भाग(१२)

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जुम्मन चाचा ऐसे ही अपने तजुर्बों को दिवाकर से बताते चले जा रहे थे और दिवाकर उनकी बातों को चटकारे लेकर के सुन रहा था,ताँगा भी अपनी रफ्त़ार से सड़क पर दौड़ा चला जा रहा था,जुम्मन चाचा एकाएक दुखी होकर बोले___ मियाँ! हमारे दादा परदादा भी रईस हुआ करते थे,मगर जबसे गोरों का इस देश में हुक्म चलने लगा तो धीरे धीरे सब छिनता चला गया और बँटवारे के बाद तो जैसे रोटी के लाले पड़ने लगें, सारी जमापूँजी खत्म होने को थी,तब अब्बाहुजूर ने खेंतों पर एक अस्तबल तैयार करवा लिया,जहाँ तरह तरह के घोड़े थे,उस समय रईस