वचन--भाग(११)

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रात हो चली थीं लेकिन अनुसुइया जी और दिवाकर की बातें खत्म ही नहीं हो रहीं थीं और उधर सारंगी अपने कमरें में रखी टेबल कुर्सी पर बैठकर अपने कुछ कागजात देख रही थीं, तभी सारंगी बोली____ माँ!अब क्या रातभर अपने मेहमान के साथ बैठी बातें करती रहोगी,सोना नहीं है क्या? अब क्या करूँ, तू तो दिनभर बाहर रहती है और मैं यहाँ लोगों से बात करने को तरस जाती हूँ,बहुत दिनों के बाद कोई मिला है, आज तो जरा जी भर के बातें कर लेने दे और तू मत सोना,मैं अभी तेरे लिए दूध लेकर आती हूँ, अनुसुइया