वो लड़का

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वो लड़का आज फिर से दीपेश बाॅस की डाँट खाकर आया। वो बिल्कुल उखड़ा हुआ था। रोज-रोज की डाँट खाने से तो अच्छा है मैं ही कुछ कर लूँ, ना घर में चैन ना दफ्तर में सुकून..........वो बस बड़बड़ा रहा था। धीरे से मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा। वो वाकई बिल्कुल टूट सा गया था। मैं सोचने लगा - इतना डाइनेमिक आदमी, दफ्तर का इतना अच्छा वर्कर, आखिर क्या हो गया है दीपेश को। वक्त की नजाकत समझते हुए मैंने उसे कुछ भी नहीं कहा बस एक ग्लास पानी का उसकी ओर बढ़ा दिया। उसने पानी पिया