इंसान की फितरत होती है जब तक चोट नहीं खाता, तब तक वह न समझना चाहता है, न सम्भलना।और जब समझ आता है तो सब कुछ बर्बाद हो हाथ से निकल चुका होता है। यही हुआ था अमित के साथ।अच्छा प्यारा सा हंसता खेलता परिवार था उसका, अच्छी सी पत्नी, दो प्यारे बच्चे, एक बेटा एवं एक बेटी।मां-पिता के साथ रहते थे वे, क्योंकि पास के शहर में ही वह एक प्राइवेट फेक्ट्री में सुपरवाइजर था,दो घंटे की दूरी थी,शनिवार को आ जाता एवं सोमवार की सुबह लौट जाता।पिता बड़े पद वाले सरकारी नौकरी से रिटायर हुए थे, अतः