भाग ७ नीता को जौनपुर पहुँचे एक हफ्ता बीत चुका था। नीता बहुत उदास थी। दिन रात रोती रहती थी। शशिकांतजी ने अपने माता पिता को सब बात बताकर हिदायत दी थी कि वे लैंडलाइन फ़ोन पर ताला लगा दे। अपने ट्रांसफर के लिए भी वे प्रयासरत थे। आज किस्मत नीता के साथ थी। उर्मिला और नीता के दादा दादी मंदिर गए हुए थे। वह हॉल में अकेले बैठे हुए रवि के बारे में सोच रही थी। तभी फोन की घंटी बजी। नीता ने फ़ोन उठाया और बेमन से हैलो बोला। "हैलो नीता! मैं रवि।" रवि की आवाज़ सुनकर नीता