स्वतंत्र सक्सेना की कहानियाँ - 7

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संपादकीय स्वतंत्र कुमार सक्सेना की कहानियाँ को पढ़ते हुये वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’ कहानी स्मृति की पोटली होती है| जो कुछ घट चुका है उसमें से काम की बातें छाँटने का सिलसिला कहानीकार के मन में निरंतर चलता रहता है| सार-तत्व को ग्रहण कर और थोथे को उड़ाते हुए सजग कहानीकार अपनी स्मृतियों को अद्यतन करता रहता है, प्रासंगिक बनाता रहता है| स्वतंत्र ने समाज को अपने तरीके से समझा है | वे अपने आसपास पसरे यथार्थ को अपनी कहानियों के लिए चुनते हैं| समाज व्यवस्था, राज व्यवस्था और अर्थव्यवस्था की विद्रूपताओं को