ये भी एक ज़िंदगी - 8

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अध्याय 8 शाम को मेरे पति आते तो वे जो मकान बन रहा है उसे देखने जाते। वही जंगल भी था। सुनसान था। मुझे लोटा साथ में लेकर आने को कहते। मुझे उसको उठाकर लाना अच्छा नहीं लगता मैं थैले में रख कर ले जाती। अब मेरे ससुर जी पड़ोस की औरतों से कहते "मेरा बेटा खाने की चीजें लाता है उसे मेरी बहू थैले में ले जाकर जहां मकान बन रहा है वहां खाते है। मुझे नहीं देती।” जब उन लोगों ने यह बात मुझे कही तो मैंने उन्हें बताया "मैं थैले में लोटा लेकर जाती हूं। मुझे लौटे