ये भी एक ज़िंदगी - 5

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अध्याय 5 वहां मुझे रखने वाला भी कोई नहीं था। पर सासु मां ने मुझे पत्र लिखने के लिए कहा। ननद ने भी आते रहने को कहा। सब दिखावा मात्र था। खैर मुझे भोपाल ले आए । जितनी मुंह उतनी बातें। सारे मिलने जुलने वाले पूछने आ गए। मैं किसी के सामने गई नहीं। सब अम्मा से कुरेद-कुरेद कर पूछ रहे थे। अम्मा बहुत परेशान हो गई। मुझे तो सोने के लिए कह दिया । मैं तो चादर ओढ़ कर लेटी रही। एक हमारे खास पहचान की औरत थी उसने राय दी "रेणुका को डॉक्टर बनाओ।" मेरी अम्मा ने कहा