बारह पन्ने - अतीत की शृंखला से पार्ट २

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मुझे तो आज भी ऐसा लगता है मानो कल की ही बात है जब सुरनगरी के अपने इस नए घर में मैंने पहली बार कदम रखा था और नल खोल कर पानी बरसाया था ।कोई भी जब पूछता, गुड्डी क्या कर रही हो ? तो मेरा जवाब होता- मी बरछा रही हूँ । आज भी अपने बचपन का वो पल मेरी आँखो में बसा है और शायद उसी पल ने मुझे बारह पन्ने लिखने को प्रेरित किया । सोचती हूँ बीते वक्त की परछाइयों से सुकून से भरे कुछ ख़ूबसूरत पल चुरा लूँ ।स्मृति के आइने पर जो