कुँजी बीती वह पुरानी थी..... लेकिन मोतियाबिंद के मेरे ऑपरेशन के दौरान जब मेरी आँखें अंधकार की निःशेषता में गईं तो उसकी कौंध मेरे समीप चली आई..... अकस्मात्..... मैंने देखा, माँ रो रही हैं, अपने स्वभाव के विरुद्ध..... और गुस्से में लाल, बाबा हॉल की पट्टीदार खिड़की की पट्टी हाथ में पकड़े हैं और माँ को नीचे फेंक रहे हैं..... अनदेखी वह कैसे दिख गई मुझे? धूम-कोहरे में लिपटी माँ की मृत्यु ने अपनी धुँध का पसारा खिसका दिया था क्या? अथवा मेरे अवचेतन मन ने ऑपरेशन की प्रक्रिया से प्रेरित मेरी आँख की पीड़ा को पीछे धकेलने की ख़ातिर